“बिहार की अर्थव्यवस्था के लिए संपत्ति में निवेश क्यों नहीं है एक समझदारी भरा कदम?”

🔷 भूमिका:

जब निवेश की बात होती है, तो अधिकांश लोग संपत्ति (भूमि या भवन) को एक सुरक्षित और स्थिर विकल्प मानते हैं। लेकिन बिहार जैसे विकासशील राज्य की सामूहिक आर्थिक प्रगति के संदर्भ में, प्रॉपर्टी में निवेश आर्थिक ठहराव को बढ़ावा देता है – न कि विकास को।

यह लेख बिहार की आर्थिक संरचना, विकास आवश्यकताओं, और नौकरी निर्माण की दृष्टि से यह विश्लेषण करता है कि क्यों संपत्ति में निवेश बिहार की अर्थव्यवस्था के लिए एक रुकावट बन सकता है।


🔷 1. 🧱 निर्जीव संपत्ति में फंसी पूंजी

जब कोई व्यक्ति जमीन या मकान खरीदता है, तो बड़ी मात्रा में धन स्थिर संपत्ति (Dead Asset) में बंद हो जाता है, जिसका कोई तात्कालिक उत्पादन या सेवा मूल्य नहीं होता।
इससे अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह (cash flow) रुकता है और पूंजी निष्क्रिय हो जाती है।

👉 उदाहरण: एक व्यक्ति 50 लाख रुपये से पटना में जमीन खरीदता है, लेकिन वह जमीन खाली पड़ी रहती है। वही पैसा अगर किसी लघु उद्योग, कृषि तकनीक या सेवा क्षेत्र में लगता, तो वह लोगों को रोजगार और उत्पादन दे सकता था।


🔷 2. 💼 रोजगार सृजन नहीं करता रियल एस्टेट निवेश

बिहार में बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हैं और काम की तलाश में पलायन करते हैं।
संपत्ति में निवेश करने से न तो उत्पादन होता है, न ही सतत रोजगार निर्माण।

इसके विपरीत, MSME, कृषि आधारित उद्योग, शिक्षा या स्वास्थ्य सेवाओं में किया गया निवेश स्थानीय युवाओं को काम और कौशल देता है।


🔷 3. 📉 अर्थव्यवस्था को “स्पेकुलेटिव” बनाना

जब लोग जमीन खरीदते हैं केवल इस उम्मीद में कि उसकी कीमत बढ़ेगी, तो यह निवेश नहीं बल्कि कल्पनात्मक लाभ का खेल बन जाता है।
इससे भूमि की कीमतें आम लोगों की पहुँच से बाहर हो जाती हैं, और साथ ही आर्थिक असमानता भी बढ़ती है।


🔷 4. ⚖️ भूमि विवाद और प्रशासनिक अड़चनें

बिहार में भूमि संबंधी विवाद, खेसरा-खतियान गड़बड़ी, नकली रजिस्ट्रेशन, और अनधिकृत कब्जे जैसी समस्याएं आम हैं।
इससे न केवल व्यक्तिगत निवेशक परेशान होते हैं, बल्कि प्रशासनिक संसाधनों की भी अनुत्पादक खपत होती है – जो विकास कार्यों में लग सकते थे।


🔷 5. 🌾 कृषि भूमि का नुकसान

बिहार में बढ़ते शहरीकरण और प्लॉटिंग के चलते उपजाऊ कृषि भूमि का तेजी से नुकसान हो रहा है।
यह राज्य की खाद्य सुरक्षा, कृषि उत्पादन, और ग्रामीण आय के लिए एक बड़ा खतरा है।


🔷 6. 🔌 इंफ्रास्ट्रक्चर का बोझ बढ़ाना, योगदान नहीं देना

नव-निर्मित कॉलोनियाँ, बिना योजना के बने मकान और खाली प्लॉट बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सेवाओं पर बोझ डालते हैं, जबकि वे अर्थव्यवस्था को कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं देते।


🔷 वैकल्पिक सुझाव:

बिहार की अर्थव्यवस्था को चाहिए ऐसे निवेश:

  • लघु और मध्यम उद्योग (MSMEs)
  • एग्रो-प्रोसेसिंग यूनिट्स
  • हेल्थकेयर और एजुकेशन सेक्टर
  • डिजिटल स्टार्टअप और सेवा आधारित उद्यमिता
  • हरित ऊर्जा और टिकाऊ कृषि तकनीक

🔷 निष्कर्ष:

संपत्ति में निवेश व्यक्तिगत स्तर पर सुरक्षित लग सकता है, लेकिन बिहार जैसे राज्य की आर्थिक वास्तविकताओं को देखें, तो यह विकास की बजाय धन के ठहराव और सामाजिक विषमता को बढ़ावा देता है।

“अगर बिहार को समृद्ध बनाना है, तो ज़मीन खरीदने से ज़्यादा ज़रूरी है — ज़मीन पर कुछ बनाना, उगाना और रोजगार देना।”

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