बिहार में आम लोगों की सोच में व्यापार और व्यवसायियों के प्रति बदलाव क्यों ज़रूरी है
प्रस्तावना
बिहार एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक रूप से समृद्ध राज्य है। यहाँ के लोगों ने शिक्षा, प्रशासन, साहित्य और राजनीति में देशभर में नाम कमाया है। लेकिन जब बात आती है व्यापार और व्यवसाय (Business and Entrepreneurship) की, तो स्थिति थोड़ी अलग दिखती है।
यहाँ आम तौर पर लोगों का व्यवसाय और व्यापारियों के प्रति दृष्टिकोण संदिग्ध, संकुचित और कई बार नकारात्मक होता है। इस सोच में बदलाव अत्यंत आवश्यक है यदि हम चाहते हैं कि बिहार आर्थिक रूप से सशक्त, आत्मनिर्भर और रोज़गार देने वाला राज्य बने।
इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि बिहार के आम लोगों की सोच में क्या समस्याएँ हैं, यह सोच क्यों बनी, और इसमें कैसे और क्यों बदलाव लाना ज़रूरी है।
1. व्यवसाय के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण: समस्या क्या है?
बिहार में आज भी बहुत सारे लोग व्यापार को एक ‘कम प्रतिष्ठित’ विकल्प मानते हैं। सामान्य धारणा है कि:
- “नौकरी करना सुरक्षित और सम्मानजनक है, व्यापार नहीं।”
- व्यवसायी हमेशा मुनाफाखोर, टैक्स चोर या धोखेबाज़ होते हैं।
- व्यापार में रिस्क है, और यह “पढ़े-लिखे” लोगों का काम नहीं।
यह सोच व्यापार के विकास के लिए सबसे बड़ा अवरोधक बन चुकी है।
2. यह सोच क्यों बनी? – ऐतिहासिक और सामाजिक कारण
✅ शिक्षा प्रणाली का सरकारी नौकरी-केंद्रित होना
बिहार की शिक्षा प्रणाली वर्षों से छात्रों को सिर्फ प्रतियोगी परीक्षा और सरकारी नौकरी के लिए तैयार करती रही है। बच्चों को यह नहीं सिखाया जाता कि वे कुछ खुद भी शुरू कर सकते हैं।
✅ राजनीतिक और प्रशासनिक प्रभाव
बहुत समय तक व्यापार को ‘छोटा काम’ माना गया और नीति निर्माता भी सरकारी नौकरी को ही सर्वोच्च मानते रहे।
✅ कुछ व्यवसायियों के गलत आचरण
कुछ व्यापारियों ने उपभोक्ताओं को धोखा दिया, टैक्स चोरी की, और कालाबाजारी की — जिससे पूरे व्यापारिक समुदाय की छवि धूमिल हुई।
3. इस सोच से क्या नुकसान होता है?
❌ नौकरी पर अत्यधिक निर्भरता
हर युवा सिर्फ सरकारी नौकरी के पीछे भाग रहा है। नतीजा —
- प्रतियोगिता की भीड़
- बेरोजगारी
- अवसाद और पलायन
❌ नवाचार और स्थानीय उद्यमिता की कमी
बिहार में अपने व्यवसाय शुरू करने वालों को सामाजिक समर्थन नहीं मिलता, बल्कि ताने सुनने पड़ते हैं — “कुछ नहीं मिला तो दुकान खोल ली!”
❌ व्यापारियों के प्रति अविश्वास और कटुता
जब समाज व्यवसायी को केवल मुनाफाखोर मानता है, तो वह भी समाज के प्रति जवाबदेह नहीं रहता — यह परस्पर अविश्वास बनाता है।
4. व्यवसाय और व्यवसायियों के प्रति क्या सोच होनी चाहिए?
✅ व्यापार भी राष्ट्र निर्माण का हिस्सा है
एक व्यवसायी सैकड़ों लोगों को रोज़गार देता है, समाज को सेवा देता है और सरकार को टैक्स देता है। यह भी एक प्रकार की सामाजिक सेवा है।
✅ व्यवसाय में भी मेहनत, संघर्ष और जोखिम होता है
जिस तरह एक सरकारी अधिकारी 9 से 5 काम करता है, एक व्यापारी 12 से 14 घंटे बिना छुट्टी के काम करता है। उसकी मेहनत और ईमानदारी को कमतर नहीं आंकना चाहिए।
✅ सही सोच से ही सही वातावरण बनता है
जब समाज व्यापार को सम्मान देगा, तभी युवा इस क्षेत्र में आएँगे। जब व्यापारी को प्रतिष्ठा मिलेगी, तभी वह भी समाज के प्रति ज़िम्मेदार होगा।
5. सोच में बदलाव कैसे लाया जाए?
5.1 शिक्षा में उद्यमिता को जोड़ा जाए
स्कूल और कॉलेज स्तर पर “बिज़नेस”, “स्टार्टअप”, और “इनकम जेनरेशन” जैसे विषयों को शामिल किया जाना चाहिए।
5.2 व्यापार करने वालों को सामाजिक प्रोत्साहन दिया जाए
जिन युवाओं ने छोटे स्तर पर कोई व्यवसाय शुरू किया है, उन्हें प्रेरणा और समर्थन मिलना चाहिए — न कि तिरस्कार।
5.3 मीडिया और समाज में सकारात्मक छवि पेश की जाए
व्यवसायियों की सफलता की कहानियाँ सामने लाई जाएँ, ताकि आम लोग समझें कि यह भी एक गर्व की बात है।
5.4 प्रशासन को भी नजरिया बदलना होगा
व्यापारियों को सिर्फ टैक्स वसूली के साधन की तरह नहीं, बल्कि साझेदार की तरह देखा जाए।
6. क्या कहती है आज की ज़रूरत?
- बिहार को व्यापार चाहिए, सिर्फ नौकरी नहीं।
- हमें व्यवसायियों को भी डॉक्टर, इंजीनियर, अफसर जितना ही सम्मान देना चाहिए।
- हमें अपने बच्चों को कहना होगा — “अगर नौकरी नहीं मिली, तो अपना कुछ शुरू कर लो, हम तुम्हारे साथ हैं।”
7. कुछ प्रेरणादायक बदलाव जो बिहार में हो रहे हैं
- पटना, भागलपुर, दरभंगा, और मुज़फ्फरपुर जैसे शहरों में अब युवा ई-कॉमर्स, डिजिटल मार्केटिंग, बेकरी, कृषि स्टार्टअप, कोचिंग संस्थान और ट्रांसपोर्ट सेक्टर में सफलता पा रहे हैं।
- कई महिलाएँ छोटे स्तर पर बुटीक, सिलाई केंद्र, और डेयरी जैसे व्यवसाय चला रही हैं।
- स्टार्टअप बिहार, मुद्रा योजना जैसी सरकारी योजनाओं से नए व्यवसायियों को सहायता मिल रही है।
निष्कर्ष
बिहार को बदलने के लिए सबसे पहले ज़रूरत है सोच बदलने की।
व्यवसाय कोई छोटा रास्ता नहीं है। व्यवसायी समाज का निर्माता होता है। जब तक आम लोग व्यवसाय और व्यापारियों को सम्मान नहीं देंगे, तब तक यहाँ निवेश नहीं आएगा, उद्योग नहीं बढ़ेंगे और युवा रोजगार नहीं पा सकेंगे।
इसलिए आज जरूरत है कि हम अपने घर, मोहल्ले, और समाज में यह संदेश फैलाएँ —
“व्यवसाय भी एक सम्मानजनक, समाजोपयोगी और गर्वपूर्ण कार्य है।”
क्या आप बिहार में कोई व्यवसाय चला रहे हैं? या ऐसा करने की सोच रहे हैं?
अपने अनुभव नीचे कमेंट में साझा करें और इस लेख को अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा करें, ताकि बदलाव की शुरुआत आपके शब्दों से हो।